बढ़ती जनसंख्या अभिशाप या वरदान पर निबंध | badhti jansankhya abhishap ya vardan par nibandh

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आज की इस लेख में हम लोग जानेंगे बढ़ती जनसंख्या वरदान या अभिशाप पर निबंध | badhti jansankhya abhishap ya Vardan par nibandh बढ़ती जनसंख्या पर इस निबंध को पहले अच्छे से पढ़े उसके बाद अपने कॉपी में खुद से लिखने का प्रयास करें। इस निबंध को पढ़ने के बाद आप बढ़ती जनसंख्या पे ग्रुप डिस्कशन और किसी वाद-विवाद प्रतियोगिता के लिए भी बहुत अच्छे से तैयारी कर सकते है।

बढ़ती जनसंख्या अभिशाप या वरदान पर निबंध | badhti jansankhya abhishap ya Vardan par nibandh

badhti jansankhya abhishap ya Vardan par nibandh
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बढ़ती जनसंख्या अभिशाप या वरदान पर निबंध वर्तमान समय में देश की सबसे बड़ी समस्याओं में एक है-जनसंख्या विस्फोट। वैज्ञानिकों का कहना है कि मानव सभ्यता की उत्पत्ति को लगभग 1 लाख, 30 हजार साल से लेकर 1 लाख, 60 हजार साल हो चुके हैं। हमें डेढ़ लाख साल लगे दुनिया की जनसंख्या को 100 करोड़ पहुँचाने में। सन् 1804 में दुनिया की आबादी ने पहली बार 100 करोड़ के आँकड़े को छुआ। अगले 123 साल में मतलब सन् 1927 में दुनिया की आबादी बढ़कर 200 करोड़ हो गई। 

फिर भी इनसान को समझ नहीं आया कि वो किस दिशा में बढ़ रहा है। सन् 1960 में 33 वर्ष बीतने के बाद इनसान ने अपनी आबादी को 300 करोड़ तक पहुँचा दिया। तब तक अनेकों ऐसे वैश्विक संगठन बन चुके थे और कुछ लोगों को यह एहसास होना शुरू हो चुका था कि अधिक जनसंख्या ही मानव सभ्यता के पतन का कारण बन सकती है। तभी सन् 1952 में आजादी के एकदम बाद भारत ने दुनिया की सबसे पहली परिवार नियोजन योजना की शुरुआत की।

उस समय भारत की आबादी थी लगभग 36 करोड़, लेकिन उससे भी बढ़ती आबादी पर कोई फरक नहीं पड़ा। 11 जुलाई, 1987 को दुनिया में 500 करोड़वें बच्चे ने जन्म लिया। तब यूनाइटेड नेशन्स को भी यह चिंता गहराने लगी और 36 सदस्यों वाले एक संगठन यूनाइटेड नेशन्स पॉपुलेशन फंड या यूएनएफपीए का गठन किया गया, जिसे दुनिया में जनसंख्या के विषय में काम करना था; क्योंकि 11 जुलाई, 1987 को दुनिया की आबादी 500 करोड़ पहुंची थी, इसलिए सन् 1989 से 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। 

फिर भी आबादी का कारवाँ रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था और सन् 1960 के 300 करोड़ आँकड़े को हमने अगले 39 वर्षों में 1999 में बढ़ाकर 600 करोड़ कर दिया। 1999 को अभी सिर्फ 20 वर्ष ही बीते हैं, लेकिन तब भी दुनिया की आबादी लगभग 770 करोड़ के आस-पास पहुंच चुकी है।

आबादी के बढ़ते आँकड़ों को देखें तो इसमें भारत का बहुत बड़ा योगदान है। जिस देश ने दुनिया में सबसे पहले परिवार नियोजन योजना प्रारंभ की, आज वो सरकारी आँकड़ों के अनुसार दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बनने के कगार पर है। दुनिया की 2.4 प्रतिशत भूमि पर भारत में दुनिया की लगभग 18 प्रतिशत आबादी रहती है और भारत के पास अपनी इस आबादी को पिलाने के लिए सिर्फ दुनिया का 4 प्रतिशत पानी ही है। आजादी के बाद से हम लगभग 100 करोड़ बढ़ चुके हैं।

कितनी चिंताजनक बात है कि आजादी के बाद से भारत में तीन गुना आबादी बढ़ चुकी है और सन् 1947 की तुलना में प्रतिव्यक्ति पानी की उपलब्धता 5177 क्यूबिक लीटर से लगभग तीन गुना घटकर 1545 क्यूबिक लीटर हो गई है। जिस देश में कभी दूध की नदियाँ बहती थीं, आज वह पानी की नदियों के लिए भी तरस रहा है। बढ़ती आबादी के लिए भोजन की चिंता के कारण हमारे देश में ग्रीन रिवोल्यूशन, ऑपरेशन फूड जैसी अनेक योजनाएँ चलाई गईं। आजादी के बाद से रासायनिक खादों का प्रयोग लगभग 80 गुना बढ़ गया और अनाज-उत्पादन लगभग 5 गुना बढ़ा और साथ में बीमारियाँ भी बढ़ गईं।

जिस देश में विश्व के पहले दो विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई, वहाँ आज दुनिया के उच्चतम 250 विश्वविद्यालयों में उस देश का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है। टैक्सपेयर्स के जिन पैसों को देश की प्रगति में लगना था, अभी उनसे हम शौचालय और गैस के कनेक्शन देने में ही लगे हैं; जबकि आज से लगभग 38 वर्ष पहले भारत और चीन की प्रतिव्यक्ति आय और अर्थव्यवस्था लगभग एक बराबर थी, लेकिन चीन ने अपनी बढ़ती आबादी को रोककर अपने संसाधनों को शोध, तकनीकी, रक्षा, रोजगार सृजन आदि के क्षेत्रों में लगाया और आज हम चीन की अर्थव्यवस्था के सामने कहीं पर भी नहीं ठहरते हैं।

सन् 1961 में हुए पहले बीपीएल सर्वे के अनुसार भारत में तब 19 करोड़ लोग गरीबी की रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहे थे, जो कि सन् 2011 के सर्वे में बढ़कर 36 करोड़ हो गए। यूनाइटेड नेशन्स के अनुसार भारत में आज 50 करोड़ से भी अधिक लोग गरीबी की रेखा से नीचे जीवनयापन करते हैं। अगले 35 वर्षों में युवा जनसंख्या अधिक होने के कारण भारत की आबादी लगभग 200 करोड़ होगी। जब दुनिया दूसरे ग्रहों की खोज करने में लगी होगी, तब हम अपनी बढ़ी हुई आबादी के लिए शौचालय और घर बनवा रहे होंगे।

आज ऐसा समय आ गया है, जब प्रदूषण के कारण स्कूलों की छुट्टी की जा रही है। नीति आयोग के अनुसार देश के बड़े 20 शहरों में कुछ साल बाद पानी समाप्त हो जाएगा। जंगलों को हम काटते जा रहे हैं और इसीलिए जंगली जानवरों ने आबादी में आना शुरू कर दिया है और अब हम उन्हें मार रहे हैं। जानवरों की आबादी को कम करने के लिए हमने कहीं नीलगायों को मारा, कहीं जंगली सूअर को मारा तो कहीं पर बंदरों को मारा जा रहा है, लेकिन इनसान जो कि अपनी आबादी बढ़ाकर जंगलों को विकास के नाम पर काटने में लगा है, उसे मारने का आदेश कौन देगा?

सन् 1974 से आज तक टैक्सपेयर्स के लगभग 2.25 लाख करोड़ रुपये परिवार नियोजन योजनाओं पर खरच किए जा चुके हैं, लेकिन यदि इस रकम का आकलन हम आज के हिसाब से करेंगे तो यह 20 लाख करोड़ से भी अधिक बैठेगी। शायद टैक्सपेयर्स के पैसों का इससे बड़ा दुरुपयोग आज तक नहीं हुआ है। इतनी बड़ी रकम खरच करके हमने क्या पाया है? शायद 100 करोड़ की जनसंख्या वृद्धि और फिर भी उस पर तर्क करने के लिए अनेक लोग तैयार हो जाते हैं।

सन् 2000 में भारत में 100 करोड़वें बच्चे ने जन्म लिया और आज वो बच्ची बालिग हो चुकी है। जिस देश में हर साल सरकारी आंकड़ों के अनुसार लगभग 1.5 करोड़ आबादी बढ़ती है, पिछले 18 वर्षों में उसी देश में 36 करोड़ आबादी बढ़ चुकी है अर्थात 2 करोड़ प्रतिवर्ष। अब कौन सही है, सरकारी आँकड़े या वास्तविकता-समझ नहीं आता। इस पर भी हम कहते हैं कि देश में प्रजनन दर अब कम हो रही है। सरकार को सही तथ्य को देश को समझाने की जरूरत है।

भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण की वेबसाइट के अनुसार अभी तक हमारे देश में 121,70,94,786 आधार कार्ड बन चुके हैं। प्राधिकरण के अनुसार 18 वर्ष तक की आयु के नागरिकों के अभी 14,34,55,413 आधार कार्ड के बनने बाकी हैं। वहीं प्राधिकरण के अनुसार 18 वर्ष से अधिक आयु के कुल 84,43,26,760 आधार कार्ड बनने हैं, लेकिन अब तक 86,92,66,410 आधार कार्ड बन चुके हैं और अभी 11 प्रतिशत और बनने बाकी हैं। इससे देश समझ सकता है कि जनसंख्या को लेकर आँकड़ों में हमारे देश में कितना विरोधाभास है।

कुछ माह पूर्व आई चीन की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन ने दावा किया है कि दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश चीन नहीं, अब भारत है। भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण की वेबसाइट भी चीन के इसी दावे को और पुष्ट करती है। भारत जनसंख्या विस्फोट के कगार पर है और प्रशासन को कोई चिंता ही नहीं है।

अब भारत को जनसंख्या नियंत्रण के नए मार्गों के विषय में सोचना होगा अन्यथा विश्व की दृष्टि में भारत गरीबों और मजदूरों की राजधानी बनकर रह जाएगा। अब यह इस देश के आम नागिरकों को सोचना है कि अपने बच्चों को क्या बनाना चाहते हैं। समझ नहीं आता कि अब हम किसको महान कहें, भारतीय इतिहास को या आने वाले भविष्य को। जो भी हो, जनसंख्या की इस बाढ़ को रोकने की आवश्यकता है अन्यथा इस बाढ़ की चपेट में सब कुछ नष्ट हो जाएगा।

निष्कर्ष: बढ़ती जनसंख्या अभिशाप या वरदान पर निबंध से संबंधित सुझाव


तो दोस्तों अगर आप बढ़ती जनसंख्या अभिशाप या वरदान (badhti jansankhya abhishap ya Vardan par niband) से संबंधित निबंध लिख रहे हैं तो हमारा यह सुझाव रहेगा कि कि इस निबंध को पूरी तरह से कॉपी ना करें अपने शब्दों में खुद से लिखने का ज्यादा से ज्यादा प्रयास करें।

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